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    वाक् एवं भाषा विकार एवं हस्तक्षेप

    • अपने बच्चे की वाणी का मूल्यांकन करें
    • बच्चों में वाक् एवं भाषा विकार
    • वयस्कों में वाक् एवं भाषा विकार
    • वाक् एवं भाषा थेरेपी
    • संचार विकारों के जोखिम कारक

    अपने बच्चे की वाणी का मूल्यांकन करें

    क्या आप/आपके बच्चे को नीचे दिए गए किसी भी समस्या का अनुभव होता है?

    • बच्चा 18 महीने का है और अभी तक नहीं बोलता या बोलता है परंतु उसकी वाणी उम्र के अनुसार नहीं है।
    • स्पष्ट बोल नहीं पाता/कुछ ध्वनियाँ नहीं बोल पाता जिससे लोग उसके बोल को समझ नहीं पाते।
    • आवाज़ से संबंधित कोई समस्या
      • यौवन के बाद पुरुष द्वारा स्त्री जैसी आवाज़ का उपयोग
      • भारी/भद्दी आवाज़ (भौंथरी/कर्कश)
    • बोलते समय हकलाना, ध्वनियों को बार–बार दोहराना, शब्द पर अटक जाना, बोलने का डर आदि।
    • स्ट्रोक या सिर की गंभीर चोट के बाद बोलने में कठिनाई/वाणी का खो जाना।
    • व्यवहार संबंधी समस्याएँ जैसे—कहने पर ध्यान न देना, काम पर ध्यान न लगा पाना, असंगत बातें करना आदि।

    यदि हाँ, तो स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट से संपर्क करें।

    बच्चों में वाक् एवं भाषा विकार

    I. वाक् एवं भाषा विकास में देरी:

    जब बच्चे की भाषा उसकी उम्र के अनुसार नहीं होती, तो देरी जानने के लिए यह चेकलिस्ट उपयोग करें।

    चेकलिस्ट:

    3 महीने तक:

    • रोने और बिना रोए ध्वनियाँ निकालता है।
    • कू–कू करता है, हँसता है।

    6 महीने तक:

    • खिलौनों पर आवाज़ें निकालता है।
    • अकेले में या बात करने पर स्वर और व्यंजन ध्वनियाँ दोहराता है (बोबिंग/बड़बड़ाना)।

    9 महीने तक:

    • ध्वनियों की नकल करने की कोशिश करता है।
    • बड़ों की आवाज़ों के बाद स्वयं आवाज़ें निकालकर संवाद करता है।

    1 वर्ष से 1½ वर्ष तक:

    • बड़ों की क्रियाओं और शब्दों की नकल करता है।
    • शब्दों या आदेशों पर उपयुक्त क्रिया करता है—जैसे “रुक जाओ”, “नीचे उतरो”, “यह क्या है?”
    • कुछ शब्द और इशारों का प्रयोग करके चीज़ें माँगता है।

    1½ से 2 वर्ष तक:

    • दो शब्दों वाले वाक्य बोलता है।
    • चित्र पहचानता है।
    • बड़ों के साथ चित्रों को देखता है।

    2 से 3 वर्ष तक:

    • 3–5 शब्दों वाले वाक्य बोलता है।
    • सरल प्रश्नों के उत्तर देता है।

    विलंब के कारण:

    • सुनने की कमी—मध्यम/गंभीर/गंभीरतम।
    • मानसिक मंदता—सीखने और याद रखने में कठिनाई जिसके कारण भाषा विकास प्रभावित होता है।
    • अति सक्रियता/ऑटिज़्म/ध्यान–अभाव।
    • भाषाई प्रोत्साहन की कमी—यदि माता–पिता बच्चे से पर्याप्त संवाद नहीं करते।
    • मस्तिष्क क्षति—भाषा एवं समझ के केंद्र प्रभावित होने पर।
    • पढ़ने, लिखने और गणित में कठिनाई।

    स्कूल शुरू करने पर कठिनाइयाँ:

    • मौखिक अभिव्यक्ति में कठिनाई
    • लिखित अभिव्यक्ति में कठिनाई
    • सुनकर समझने में कठिनाई
    • जोर से पढ़ने में कठिनाई
    • गणित में कठिनाई
    • व्याकरणिक त्रुटियाँ अधिक होना
    • नए वातावरण में ढलने में कठिनाई
    • दाएँ–बाएँ भ्रम
    • सामान्य अस्थिरता, कम संतुलन, बार–बार गिरना

    II. ध्वनियों का गलत उच्चारण:

    • गलत वयस्क मॉडल या गलत सीखना (जैसे ‘कैट’ के बजाय ‘टैट’, ‘सन’ के बजाय ‘टन’)।
    • क्लेफ्ट लिप/पैलेट—सर्जरी/उपकरण की आवश्यकता, लेकिन नाक से आवाज़ आना/गलत उच्चारण हो सकता है।
    • वाणी अंगों की कमजोरी या लकवा—चबाने और निगलने में भी कठिनाई।
    • मध्यम/गंभीर सुनने की कमी।

    III. आवाज़ संबंधी विकार:

    बच्चे बहुत सक्रिय और उत्साही होते हैं। अधिक बोलने/चिल्लाने से आवाज़ भारी हो सकती है।

    IV. हकलाना:

    बोलने का प्रवाह बाधित होने से वाणी की प्रभावशीलता घटती है। 2–4 वर्ष के बच्चों में यह सामान्य रूप से देखा जा सकता है और माता–पिता के सहयोग से यह अपने–आप ठीक हो सकता है।

    वयस्कों में वाक् एवं भाषा विकार

    भाषा विकार:

    मस्तिष्क के विशेष केंद्र हमें बोलने, सोचने और अपनी भावनाएँ व्यक्त करने में सहायता करते हैं। सिर की चोट या लकवे के कारण भाषा केंद्र क्षतिग्रस्त हो सकते हैं, जिससे अफ़ेज़िया नामक विकार उत्पन्न होता है। इसमें बोलने–समझने, पढ़ने–लिखने और गणना में कठिनाई होती है।

    परिवार का भावनात्मक सहयोग और वाक्–भाषा थेरेपी बहुत आवश्यक होती है।

    अस्पष्ट वाणी:

    मस्तिष्क के वे केंद्र जो वाणी अंगों की गति को नियंत्रित करते हैं, यदि प्रभावित हों, तो अस्पष्ट वाणी, चबाने और निगलने में कठिनाई हो सकती है।

    आवाज़ विकार:

    • भारी आवाज़—अत्यधिक उपयोग, गलत उपयोग, वोकल कॉर्ड की गाँठ, लकवा आदि कारण। ENT विशेषज्ञ की सलाह लें।
    • लिंग के अनुसार अनुचित आवाज़—यौवन के बाद पुरुष की आवाज़ भारी होती है, परंतु कुछ पुरुष नई आवाज़ का उपयोग नहीं कर पाते। थेरेपी से सुधार संभव है।

    हकलाना:

    यह समस्या बचपन में शुरू होकर वयस्कता तक जारी रह सकती है। इससे सामाजिक एवं व्यावसायिक जीवन प्रभावित हो सकता है।

    वाक् एवं भाषा थेरेपी

    स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट द्वारा वाक्–भाषा विकारों का प्रबंधन किया जाता है। टीम में ऑडियोलॉजिस्ट, मनोवैज्ञानिक, ENT, बाल रोग विशेषज्ञ, न्यूरोलॉजिस्ट, विशेष शिक्षक शामिल होते हैं। थेरेपी एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है जिसमें निरंतर अभ्यास और परिवार का सहयोग आवश्यक है।

    किसी भी वाक्, भाषा या सुनने की समस्या के लिए निकटतम सरकारी/निजी अस्पताल में ऑडियोलॉजिस्ट/स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट से संपर्क करें।

    संचार विकारों के जोखिम कारक

    निम्नलिखित जोखिम कारकों को ध्यान रखना उपयोगी है:

    • जन्मोत्तर संक्रमण—रूबेला, हर्पीस
    • कम जन्म–वजन—1500 ग्राम से कम
    • ओटोटॉक्सिक दवाएँ—10 दिन या अधिक समय तक
    • स्तनपान/खाना निगलने में कठिनाई—प्रिमेच्योर शिशु या क्लेफ्ट लिप/पैलेट वाले बच्चों में
    • जन्म दोष—क्लेफ्ट लिप/पैलेट, सबम्यूकस क्लेफ्ट, यूवुला की अनुपस्थिति, पिन्ना की विकृति, हाइड्रोसेफालस, क्रोमोसोमल सिंड्रोम
    • रक्त आधान/एक्सचेंज—गंभीर पीलिया का कारण
    • परिवार में सुनने की कमी का इतिहास
    • परिवार में वाणी/सीखने की समस्याओं का इतिहास

    याद रखें:

    समय पर पहचान, शीघ्र प्रबंधन एवं परिवार तथा समुदाय का सहयोग—पुनर्वास प्रक्रिया का मुख्य आधार है।